Tuesday, February 1, 2011

kashmir: the way to complete integration



map
पूर्ण विलय से पूर्ण एकात्मता की ओर
 
गौरवशाली अतीत पर प्रश्नचिन्ह?
महर्षि कश्यप द्वारा निर्मित भारत का नंदन वन (कश्मीर घाटी) आज पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की आग में सुलग रहा है। सारे संसार में भारतीय राष्ट्रवाद पर आधारित शैवमत, बौद्धमत, वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करने वाले जम्मू-कश्मीर की धरती से हजारों हिन्दू महापुरुषों की परंपरा और नाम मिटाए जा रहे हैं।
अरब हमलावरों का सफल प्रतिकार करने वाले सम्राट चन्द्रापीढ़, ईरान-तुर्किस्तान से लेकर मध्य एशिया तक भारत की सांस्कृतिक पताका फहराने वाले सम्राट ललितादित्य, महाराजा अवन्तिवर्मन्, काबुल तक शासन करने वाले राजा शंकर वर्मन् की दिग्विजयी विरासत कश्मीर घाटी के गौरवशाली हिन्दू इतिहास की साक्षी हैं।
इसी प्रकार मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के सुपुत्र कुश के वंशज बाहुलोचन/जम्बूलोचन, तथाकथित विश्वविजेता सिकंदर के अभियान को विफल करने वाले डोगरे वीर, महमूद गजनवी को दो बार पराजित करने वाले महाराजा संग्रामराज, बंदा वीर वैरागी, जोरावर सिंह और महाराणा गुलाब सिंह डुग्गर धरती (जम्मू) का स्वाभिमान हैं। लेह-लद्दाख के हजारों बौद्ध मठ भी भारत की राष्ट्रीय संस्कृति के प्रतीक हैं। जम्मू-कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थलों, विशाल आश्रमों और सांस्कृतिक केन्द्रों के खण्डहरों को देखकर समूचे जम्मू-कश्मीर के गौरवशाली कालखण्ड का परिचय मिलता है।
धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण
इतिहास साक्षी है कि पूरे भारत में विदेशी हमलावरों ने बलात् धर्मांतरण द्वारा हिन्दू पूर्वजों की संतानों को विधर्मी बनाकर भारत विरोधियों की एक लम्बी कतार खड़ी कर दी। इसी तरह का क्रूर इतिहास जम्मू-कश्मीर में भी दोहराया गया और यही वर्तमान अलगाववाद का आधार है। धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण का ये दर्दनाक दृश्य सन् 1320 से शुरु हुआ और कश्मीर घाटी का भारतीय स्वरूप बिगाड़ने वाला यह काला इतिहास सन् 1989 में हुए कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् सामूहिक निष्कासन तक जारी रहा।
भारत का विभाजन और पाकिस्तान का आक्रमण
भारत का विभाजन होते ही जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने पाकिस्तान के साथ स्टैण्डस्टिल ऐग्रीमेंटकर लिया क्योंकि कश्मीर घाटी को जाने वाला एकमात्र मार्ग रावलपिंडी से ही था। इस समझौते को तोड़कर 22 अक्टूबर सन् 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए कश्मीर घाटी पर आक्रमण कर दिया। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरुजी गोलवलकर की पहल पर महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को पूरे जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कर दिया। भारत की सेना कश्मीर घाटी में पहुंची।
भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना द्वारा विजित भारतीय इलाकों को मुक्त करवाने के लिए जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए तो प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा के साथ पाकिस्तानी आक्रमण का मुद्दा यूएनओ की सुरक्षा परिषद में भेज दिया। साथ ही जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह जैसा असंवैधानिक आश्वासन जोड़ दिया। जम्मू-कश्मीर का जो भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया आज उसी पाक अधिग्रहित कश्मीर में पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों की देखरेख में कश्मीरी युवकों को हिंसक जिहाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
पूर्ण और अंतिम विलय
26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय उसी वैधानिक विलय पत्र के आधार पर किया जिस पर भारत की शेष 568 रियासतों के राजाओं ने किया था।
भारत के गवर्नर जनरल ने 27 अक्टूबर 1947 को इस विलय को स्वीकृति दे दी। ये विलय सशर्त नहीं था। भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अनुसार इस विलय पर आपत्ति करने का अधिकार संबंधित राज्यों के निवासियों सहित किसी को भी नहीं था।
1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का निर्वाचन हुआ। इसी संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की पुष्टि कर दी। 1956 में इस संविधान सभा ने भारत के संविधान के अनुछेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की। 26 जनवरी 1957 को यह संविधान जम्मू-कश्मीर की विधान सभा की स्वीकृति के बाद लागू हो गया। इसी संविधान की धारा 3 के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा।धारा 4 के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य में वह सारा क्षेत्र शामिल है जो 15 अगस्त 1947 तक राज्य के राजा के आधिपत्य में था। इसी संविधान की धारा 147 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धारा 3 व धारा 4 को बदला नहीं जा सकता।
स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर की जनता, विधानसभा और सरकार ने यह कानूनी रूप से माना है कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
1975 में हुए इंदिरा-शेख समझौते में भी जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कहा गया है।
22 फरवरी 1994 को भारतीय संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव के माध्यम से संकल्प दोहराया गया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
डा. मुखर्जी का अमर बलिदान
महाराजा हरिसिंह द्वारा जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय करने के पश्चात भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्नातक, मुस्लिम कांफ्रेंस के निर्माता और मुस्लिम बहुल कश्मीर में मजहबी जुनून फैलाकर हिन्दू राजा के विरुद्ध बगावत करने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम नेता और अपने खास दोस्त शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को सत्ता सौंपने के लिए महाराजा को मजबूर किया।
भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया गया।
शेख अब्दुल्ला द्वारा सत्ता पर बैठते ही जम्मू और लद्दाख के क्षेत्रों के साथ भेद-भाव का सिलसिला शुरू कर दिया गया।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को वजीर-ए-आजम और सदर-ए-रियासत कहा जाने लगा। भारतीयों के लिए जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने के लिए परमिट बनवाना जरूरी हो गया।
शेख के इन अत्याचारों के विरुद्ध जम्मू की राष्ट्रवादी शक्तियों ने पं. प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद नामक संगठन बनाकर एक प्रचंड सत्याग्रह शुरु किया। शेख अब्दुल्ला द्वारा किए गए अत्याचारों का सामना करते हुए दो दर्जन कार्यकर्ता शहीद हुए। हजारों को जेलों में बंद करके अमानवीय यातनाएं दी गई।
shyamaprasad
प्रजा परिषद का यह प्रचण्ड आंदोलन पूरे देश में चला। भारतीय जनसंघ के प्रधान डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इस परमिट व्यवस्था को तोड़कर सत्याग्रह किया। श्रीनगर के कारावास में रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई तब जाकर भारत के प्रधानमंत्री को सारी परिस्थिति समझ में आई। शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया, परमिट व्यवस्था समाप्त हुई।
अलगाववादी विशेष दर्जा
सारी परिस्थितियां समझ में आने के बाद भी भारत के प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को कायम रखा और अलग झण्डे, संविधान की स्वीकृति दे दी। परिणामस्वरूप:-
भारत की सरकार भारतीय संसद द्वारा पारित कोई भी कानून प्रदेश की विधान सभा की अनुमति के बिना जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं कर सकती।
जम्मू-कश्मीर का नागरिक भारत का भी नागरिक है जबकि शेष भारत का नागरिक (राष्ट्रपति सहित) जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं हो सकता। उसे वहां संपत्ति खरीदने और वोट देने जैसे अनेकों मौलिक अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं।
जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल यहां का नागरिक न होने के कारण बाहर का व्यक्ति (विदेशी) कहलाता है। अलगाववादी राज्यपाल को भारत का एजेण्ट प्रचारित करते हैं।
भारतीय संसद में पारित पूजा स्थल विधेयक, सरकारी जन्म नियंत्रण कानून और मण्डल कमीशन रिपोर्ट इत्यादि समेत 100 से अधिक कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किए जा सके।
जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान ने कश्मीर के अधिकांश मुस्लिम युवकों को भारत के साथ जुड़ने नहीं दिया।
एक ओर भारत की सरकार अपने को संसार का सबसे बड़ा पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करती है और दूसरी ओर इसी राष्ट्र के एक अभिन्न प्रांत जम्मू-कश्मीर में एक समुदाय के बहुमत के आधार पर अलग संविधान को मान्यता दे रही है।
Kashmir Pandit house
कश्मीरी पंडितों के उजड़े हुए घर
समस्या की जड़ मजहबी कट्टरवाद
वास्तव में कश्मीर की समस्या का आधार राजनीतिक न होकर मजहबी कट्टरवाद और सीमापारीय आतंकवाद है। इसीलिए कट्टरपंथियों द्वारा आजादी मांगी जा रही है। यही वजह है कि पिछले 63 वर्षों में जम्मू-कश्मीर को दी गई अरबों रुपयों की आर्थिक सहायता के बावजूद वहां अलगाववाद बढ़ा है। नैशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, हुर्रियत कांफ्रेस, तहरीके हुर्रियत तथा अन्य आतंकवादी संगठन क्रमशः अटानिमी, सेल्फ रूल, ग्रेटर कश्मीर, पाकिस्तान में विलय और आजाद कश्मीर जैसी अराष्ट्रीय मांगें कर रहे हैं।
ये सभी संगठन जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र घोषित करने, भारतीय सेना की जम्मू-कश्मीर से वापसी, सुरक्षा बलों के विशेषाधिकारों की समाप्ति, मुजाहिद्दीनों (आतंकियों) की रिहाई, नियंत्रण रेखा को आम रास्ता बनाने, पाकिस्तान की मुद्रा को कश्मीर घाटी में जारी करने, पूरे जम्मू-कश्मीर पर भारत/पाकिस्तान का संयुक्त नियंत्रण कायम करने जैसे मुद्दे उठा रहे हैं।
मुख्यमंत्री का असंवैधानिक वक्तव्य
उमर अब्दुल्ला ने प्रदेश की विधानसभा में साफ कहा है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय अधूरा और सशर्त है। घाटी में व्याप्त वर्तमान परिस्थितियां केवल कानून व्यवस्था का ही संकट नहीं है। कश्मीर के लोगों की उम्मीदों को सिर्फ विकास, अच्छी सरकार और आर्थिक पैकेजों से ही पूरा नहीं किया जा सकता इसके लिए एक राजनीतिक हल जरूरी है।इसी प्रकार पी. चिदंबरम भी कहते हैं कि कश्मीरियों के जज्बात और उनसे किए गए वादों को पूरा करना होगा। गृहमंत्री महोदय ने भारतीय सेना को वापस बुलाने और सुरक्षाबलों के विशेषाधिकारों को समाप्त करने जैसे आश्वासन भी अलगाववादियों को दिए हैं। सेना के तीन डिवीजन हटा लिए गए हैं।
भेदभाव की पराकाष्ठा
जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और भारतीय सेना की वापसी के लिए उतावले हो रहे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कश्मीर घाटी से निवार्सित किए गए चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं की घर वापसी, विभाजन के समय पाकिस्तान और पीओके से आकर जम्मू में बसे लाखों हिन्दुओं की नागरिकता, भारत-पाकिस्तान युद्धों के समय सीमांत क्षेत्रों से हटाए गए लोगों के पुर्नवास, आतंकवाद से पीड़ित लोगों की दशा, जम्मू और लद्दाख संभागों के प्रति हो रहे पक्षपात इत्यादि समस्याओं की ओर ध्यान नहीं जा रहा उन्हें केवल कश्मीर घाटी की चिंता है।
विदेशी संस्कृति (कथित कश्मीरियत)
अलगाववादियों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में चलाया जा रहा वर्तमान जिहाद कश्मीरियतकी रक्षा के लिए है। यह कहते हुए अलगाववादी नेता 6 हजार वर्ष पुरानी संस्कृति को तिलांजलि देकर 6 सौ वर्ष पुरानी उस कश्मीरियत की दुहाई देते हैं जो कश्मीर की धरती पर विकसित नहीं हुई। यह तो कश्मीर पर आक्रमण करने वाले विदेशी हमलावरों की तहजीबहै जिसे जबरदस्ती कश्मीरियत बनाया जा रहा है। दुख की बात है कि इस विदेशी संस्कृति के पोषक आज कश्मीर के मालिक बने बैठे हैं और मौलिक संस्कृति के उत्तराधिकारी कश्मीरी हिन्दू विस्थापित होकर देश के कोने-कोने में भटक रहे हैं।
वर्तमान परिस्थिति
तीन बार किए गए युद्धों के बाद भी कश्मीर को हड़पने में विफल रहे पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में आपरेशन टोपाज़के अंतर्गत 80 के दशक में आतंक आधारित अघोषित युद्ध प्रारम्भ कर दिया। आतंकियों के निशाने पर भारतीय सेना, हिन्दू और राष्ट्रवादी मुसलमान थे। भारतीय सुरक्षाबलों के बलिदानों से आतंकवाद कुछ थमा तो है परन्तु पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर की सीमाओं में सशस्त्र घुसपैठ जारी है। कश्मीर घाटी में सक्रिय इन संगठनों के नेताओं के तार पाकिस्तान में बैठे आतंकी कमाण्डरों और आईएसआई के अधिकारियों के साथ जुड़े हुए हैं। वहां से इन्हें धन, हथियार और मार्गदर्शन मिल रहा है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज, संविधान और सुरक्षा बलों का सरेआम अपमान किया जा रहा है। कश्मीर बनेगा-पाकिस्तान’, ‘हम क्या चाहते-आजादी’, ‘कश्मीर में चलेगा-निजाम ए मुस्तफा’, ‘भारतीय सेना/कुत्तो वापस जाओऔर पाकिस्तान जिंदाबादइत्यादि नारों से अलगाववादी तत्व अपना एजेण्डा घोषित कर रहे हैं। 20 वर्ष पूर्व कश्मीर के मूल निवासी 4 लाख कश्मीरी पंडितों का जबरदस्ती पलायन करवाकर कश्मीर घाटी को लगभग हिन्दू विहीन करने के पश्चात अब वहां रह रहे 60 हजार से ज्यादा सिखों को इस्लाम कबूल करने अथवा कश्मीर से निकल जाने के जिहादी फरमान जारी किए जा रहे हैं। पाकिस्तान के इशारे पर अलगाववादी नेता आतंकी कमाण्डरों की योजनानुसार बच्चों और महिलाओं द्वारा भारतीय सैनिकों पर पत्थरबाजी करवा रहे हैं।
भ्रमित वार्ताकार
समस्या का समाधान खोजने के लिए भारत की सरकार द्वारा कश्मीर में भेजे गए प्रतिनिधि मण्डलों और वार्ताकारों में शामिल इन तथाकथित प्रगतिशील राजनेताओं/पत्रकारों और लेखकों ने जेलों में जाकर आतंकवादियों से और घरों में जाकर अलगाववादी नेताओं के साथ हमदर्दी जताते हुए उनसे ‘‘आजादी का रोडमैप’’ ही नहीं मांगा अपितु यह बयान भी दागे कि जम्मू-कश्मीर कभी भारत का अंग रहा ही नहीं। इन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने मुख्यमंत्री और हुर्रियत नेताओं द्वारा दिए गए असंवैधानिक बयानों पर स्वीकृति की मोहर लगा दी।
Police helpless
घुटने टेकती सरकार
जैसे-जैसे समय बीत रहा है कश्मीर घाटी में पांव पसार चुके पाकिस्तानी तत्वों की ताकत बढ़ रही है। तुष्टीकरण के नशे में केन्द्र की सरकार एक बार फिर घुटने टेकती नजर आ रही है। प्राप्त समाचारों के अनुसार अटानमी अर्थात 1953 से पहले वाली संवैधानिक व्यवस्था थोपने की तैयारी चल रही है। यह व्यवस्था भारत के संविधान, संसद और सर्वोच्च न्यायालय को ठुकरा कर आजादी का रास्ता प्रशस्त करेगी।
देशघातक गिरोह
उधर कश्मीर घाटी में सक्रिय अलगाववादी नेता सरकार और प्रशासन के आशीर्वाद से देश के विभिन्न शहरों में जाकर अपने अलगाववादी एजेण्डे का खुला प्रचार कर रहे हैं। राष्ट्रविरोधी माओवादी, नक्सलवादी, खालिस्तानी और कई वामपंथी नेता इनका साथ दे रहे हैं। ये लोग स्थान स्थान पर जाकर कश्मीर की आजादी जैसे विषयों पर विचार गोष्ठियां कर रहे हैं। इनका सार्वजनिक तौर पर पूर्ण बहिष्कार होना चाहिए।
वास्तविक समाधान
जम्मू-कश्मीर की भारत के अन्य प्रान्तों के साथ एकात्मता करने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन के साथ अनुच्छेद 370 को समाप्त करके प्रदेश के अलग झण्डे और अलग संविधान के अस्तित्व को समाप्त किया जाए।
hidden agenda
जम्मू-कश्मीर के प्रशासन में जमे बैठे पाकिस्तान समर्थकों, धार्मिक स्थलों में छिपे उपद्रवियों और जंगलों में स्थापित आतंकियों के गुप्त ठिकानों पर सेना की सहायता से सख्त कार्रवाई की जाए।
अलगाववादी संगठनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर इनके नेताओं पर देशद्रोह के मुकद्दमें चलाए जाएं।
कश्मीर घाटी में अपने घरों से जबरदस्ती और योजनाबद्ध तरीके से उजाड़े गए चार लाख से ज्यादा हिन्दुओं की सम्मानजनक एवं सुरक्षित घर वापसी को सुनिश्चित किया जाए। पाक-अधिकृत कश्मीर से आए हिन्दुओं को सभी मौलिक अधिकार दिए जाएं और जम्मू और लद्दाख के प्रति हो रहे भेद-भाव को समाप्त करने की संवैधानिक व्यवस्था की जाए।
सुरक्षाबलों के विशेषाधिकार वापस लेने जैसे कदम उठाकर उनके मनोबल को न तोड़ा जाए। सामान्य नागरिकों की सुरक्षा के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात सुरक्षाबलों को देशद्रोही आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के सभी अधिकार सौंपे जाएं।
सन् 1994 में भारतीय संसद द्वारा लिए गए संकल्प संपूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंगको क्रियान्वित करने के लिए यथासंभव कार्रवाई की जाए।
समय की आवश्यकता-राष्ट्रीय सहमति
मुस्लिम कश्मीरी विद्वान यह अच्छी तरह से जानते हैं कि वे हिन्दू पूर्वजों की संतानें हैं और भारतीय संस्कृति का अभिन्न भाग कश्मीरियत हिन्दू और मुसलमानों की सांझी विरासत है।
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के कुल 22 जिलों में केवल कश्मीर घाटी (मात्र 14 प्रतिशत क्षेत्रफल) के 10 जिलों में से मात्र 5 जिलों (श्रीनगर, बारामूला, पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां) में ही अलगाववादियों का प्रभाव है शेष 17 जिलों में राष्ट्र भक्तों का प्रबल बहुमत है।
समय की आवश्यकता है कि अलगाववादियों पर सख्त कार्रवाई हो ताकि कश्मीर घाटी में सहमी हुई राष्ट्रवादी शक्तियों को बल मिले। यदि भारत की सरकार अब भी न चेती और देश की राष्ट्रवादी शक्तियों ने संगठित होकर अलगाववादी मनोवृत्ति और तुष्टिकरण की राजनीति का प्रतिकार न किया तो देश की अखण्डता पर मंडरा रहा यह संकट और भी गहरा जाएगा।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रचार विभाग,
केशव कुंज, झंडेवाला, नई दिल्ली - 110055
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सम्पर्क अभियान-2011

No comments: