हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति संत, मंदिर और संघ इस राष्ट्र की सुरक्षा की ‘गारंटी’ हैं। केन्द्र सरकार हिन्दू समाज के हर मानबिंदु को खत्म करना चाहती है। वह झूठे आरोप लगाकर, संघ, संत और श्रद्धा के प्रतीक मंदिरों को बदनाम कर रही है। हिन्दू समाज इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। हिन्दू समाज, भगवा रंग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘आतंक’ के विरुद्धार्थी शब्द हैं। हिन्दुत्व के मूल में श्रेष्ठ जीवनमूल्य हैं, ये बदल नहीं सकते। उसी हिन्दुत्व का प्रतीक भगवा रंग है जो अपने राष्ट्र ध्वज का सिरमौर है। हिन्दुत्व हम सबकी पहचान है, जो सभी पंथों, उपासना पद्धतियों-संप्रदायों को केवल सहन ही नहीं करता, बल्कि स्वीकार भी करता है और उनकी सुरक्षा का अभिवचन देता है। इसी विचारधारा के आधार पर संपूर्ण समाज को संगठित करने वाले संघ के साथ आतंकवाद शब्द को छल-कपट से चिपकाने की चेष्टा चल रही है। अपने देश में हुए कुछ बम विस्फोटों में कुछ व्यक्ति पकड़े गये, जो हिन्दू हैं। कहा जा रहा है कि वे सभी संघ के हैं। यह असत्य है। पकड़े गये अधिकतर लोग उग्र प्रकृति के हिन्दू तो हो सकते हैं, परंतु वे संघ से दूर गये लोग हैं। लेकिन इसको आधार बनाकर पहले बात चलायी गयी ‘हिन्दू आतंकवाद’ की और जब ध्यान में आया कि जनमत इसका विरोध करेगा तो शब्द बदल दिया, कहा-‘भगवा आतंकवाद’। यह सिद्ध करने का प्रयास हो रहा है कि ये लोग भी ‘आतंकवादी’ हैं। यह एक सोचे-समझे राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है। जिन पर ये आरोप लगाए जा रहे हैं उनका चरित्र तो समाज के सामने खुला है, ये सेवा करने वाले, मनुष्य को सद्गुणों की शिक्षा देने वाले लोग हैं। 2003 के पश्चात् सबसे पहला हाथ कांची के जगद्गुरु शंकराचार्य पर डाला गया। उसके बाद ओड़ीशा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या की गयी। स्वामी जी वहां के वनवासियों के बीच रहकर शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि सुधार, ग्राम विकास का काम करते थे। वह 80 साल की वृद्धावस्था में भी युवकोचित उत्साह से काम करते थे। वनवासी बंधुओं को स्वावलम्बन और स्वाभिमान की शिक्षा देते थे। उनसे किन्हें खतरा था, उनकी हत्या के पीछे कौन षड्यंत्रकारी थे, यह सबके सामने स्पष्ट है। पूर्व में आठ बार उनकी हत्या का प्रयास किया गया था, अंततः 9 वीं बार किया गया प्रयास सफल हो गया। ऐसा प्रयास होने वाला है, यह सूचना वहां की सरकार के पास थी, फिर भी उनकी सुरक्षा वापस ले ली गयी। उनकी हत्या के बाद दोषी अभी तक गिरफ्तार नहीं किए जा सके हैं। ये कौन लोग हैं, वहां का समाज जानता है। स्वामी लक्ष्मणानंद के सेवा कार्यों के कारण वहां हिन्दुओं का मतांतरण रुक गया था। जिहादी आतंकवाद को समझें वस्तुतः वास्तविकता को समझने के लिए भारत में जिहादी आतंकवाद के स्वरूप को समझना जरूरी है। देश में गत दो दशक से शुरू हुए जिहादी आतंकवाद के दौर में हजारों निर्दोष नागरिकों व सेना और सुरक्षा बलों के जवानों-अधिकारियों की नृशंस हत्या की गयी। राष्ट्र की संप्रभुता व आंतरिक सुरक्षा को छिन्न-विछिन्न कर देने जैसे दुष्ट प्रयास हुए। इनकी अनदेखी कर केन्द्र की संप्रग सरकार व कथित सेकुलर दलों के कुछ लोग वोट की राजनीति और सत्ता स्वार्थों के लिए हिन्दू-आतंकवाद का भूत खड़ा कर रहे हैं इस तरह हिन्दुत्व विरोधी दुष्प्रचार करते हुए ये लोग हिन्दू चेतना के प्रतीक देशभक्त हिन्दू संगठनों व साधु-संतों को बदनाम करने में लगे हैं और भ्रम उत्पन्न करके सत्ता की राजनीति के लिए राष्ट्रविरोधी व अलगाववादी ताकतों की अनदेखी की जा रही है। भारत की संसद पर जिहादी हमले (13 दिसंबर, 2001) को अब नौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। पाकिस्तान पोषित सशस्त्रजिहादी आतंकवादी सारे सुरक्षा प्रबंधों को धता बताकर हमारी संसद में घुस गए और संसद परिसर रक्तरंजित हो गया। इसके बाद तो इन आतंकवादियों ने हमारे बड़े नगरों को चुन-चुनकर निशाना बनाया। हमारे प्रमुख धार्मिक स्थलों, दिल्ली के चहल-पहल भरे बाजारों, मुम्बई लोकल ट्रेनों में शृंखलाबद्ध विस्फोटों से होते हुए यह आग 26/11 के वीभत्स और पूरे देश को चैंकाने वाले मुम्बई कांड तक पहुंच गई, लेकिन हमारी सरकार नहीं चेती। यूपीए सरकार इस जिहादी आतंकवाद से कड़ाई से निपटने की न तो राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखा सकी और न इसके लिए जरूरी सख्त कदम उठा सकी। ऐसी स्थिति में नागरिकों में असुरक्षा की भावना घर कर जाए तो इसका तात्पर्य है कि देश की सरकार उन्हें सुरक्षा देने में पूरी तरह विफल है। यह अत्यंत दुर्भाग्यजनक है कि मुस्लिम तुष्टीकरण व वोट की राजनीति ने जिहादी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न की। सरकार पिछले अनेक वर्षों में इससे निपटने की रणनीति, तैयारियों व योजनाओं का ढोंग करती रही, उसने जिहादी आतंकवाद से निपटने में कोई सख्ती नहीं दिखाई। इसी मुस्लिमपरस्त मानसिकता का परिणाम है कि संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल को चार साल पूर्व सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा मिलने के बावजूद उसे फांसी के फंदे से लगातार बचाया जा रहा है। कथित सेकुलर नेता दिल्ली के बाटला हाउस मुठभेड़ कांड में मारे गए जिहादी आतंकवादी मुस्लिम युवकों की हिमायत करते हुए न केवल उस मुठभेड़ पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि आतंकवादियों से लड़ते हुए बलिदान हुए पुलिस अधिकारी मोहन चन्द्र शर्मा के बलिदान को भी लांछित करते हैं और मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों के गांव (जिला आजमगढ़, उ.प्र.) जाकर उनके परिजनों को सांत्वना देते हुए न्याय दिलाने की बात करते हैं। आतंकवादियों के घरों में जाकर सांत्वना देने के लिए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के साथ-साथ कथित मानवाधिकारवादी तीस्ता सीतलवाड़ व जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी सहित अनेक सेकुलरों की दौड़ उस ओर शुरू हो गई है। यह एक महत्वपूर्ण बात है कि लगभग सभी आतंकवादी घटनाओं के बाद उनको अंजाम देने का दावा करने वाले इस्लामी संगठन लश्कर-ए-तैयबा, हिज़्ब-उल-मुजाहिद्दीन, जमात-उद-दावा, इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मुहम्मद, अल कायदा सामने आते हैं। हाल ही में 7 दिसंबर को वाराणसी के गंगा घाट पर हुए आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी भी इंडियन मुजाहिदीन ने अपने सिर ली। ये आतंकवादी संगठन खुलेआम इस बात की अनेक बार अपने संदेशों व धमकियों में घोषणा कर चुके हैं कि दारुल हरब (मुस्लिम अल्पसंख्या वाली भारत की धरती) को दारुल इस्लाम (पूर्णतः इस्लामी विश्वास वाली धरती) में बदलने के लिए ये जिहाद है। आतंकवाद सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, यह तो, भारत की पहचान को ही समाप्त कर देने का षड्यंत्र है। पाकिस्तान के तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक ने तो इस्लामिक युद्ध (जिहाद) पर एक पूरी पुस्तक लिखवाई जो पाकिस्तान के जवानों के लिए पढ़ना अनिवार्य थी। इस जुनूनी मानसिकता को समझने के बजाय कथित सेकुलर दल वोट और सत्ता की राजनीति के लिए उसे पोषित कर रहे हैं। वोट-राजनीति का खेल जनता का ध्यान भटकाने के उद्देश्य से इन तत्वों ने राजनीतिक षड्यंत्र रचकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू संगठनों व साधु-संन्यासियों के सिर आतंकवाद का ठीकरा फोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया। ‘हिन्दू आतंकवाद’ व ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द गढ़कर यूपीए सरकार ने जिहादी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को ही दूसरी दिशा में मोड़ दिया। दरअसल राजनीतिक स्वार्थ के कारण ‘हिन्दू आतंकवाद’ के नाम पर दो निशाने साधने का शड्यंत्र किया गया- एक तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने का और दूसरा मुस्लिम मतदाता को भ्रमित करने का। वास्तव में यह हिन्दुत्व के विरुद्ध राजनीतिक दुष्प्रचार है, इसलिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज को इसका प्रतिकार करने के लिए आगे आना चाहिए। स्व. हेमंत करकरे के बारे में कांग्रेस के महासचिव श्री दिग्विजय सिंह का वक्तव्य झूठा, अनावश्यक व उद्वेगजनक है। ऐसे निराधार वक्तव्यों से आतंकवाद के साथ चल रही हमारी लड़ाई कमजोर होती है। अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए राजकीय नेता कितना नीचे गिर सकते हैं, यह इसका उदाहरण है। इसी प्रकार कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी का विकीलीक्स द्वारा बाहर आया कथन कि लश्कर-ए-तैयबा की तुलना में भारत के लिए हिन्दू कट्टरवाद ज्यादा खतरनाक है, उनकी अपरिपक्वता तथा परिस्थिति का गलत आकलन ही दर्शाता है। जबकि सारी दुनिया जिहादी आतंकवाद से ग्रस्त एवं त्रस्त है, जिससे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहकार की बातें चल रही हैं, पाकिस्तान समर्थित एवं पोषित जिस आतंकवाद की त्रासदी को भारत गत 2 दशकों से लगातार झेल रहा है वह कौनसा आतंकवाद है? ऐसी स्थिति में श्री राहुल गांधी का यह बयान आतंकवाद के विरुद्ध हमारी लड़ाई की गंभीरता को ही कम करता है। एक प्रश्न यह भी उठता है कि इन कुछ घटनाओं में जांच एजेंसियों व एटीएस ने जांच में जितनी तेजी व तत्परता दिखाई, अन्य दर्जनों मामले क्यों सरकार व जांच एजेंसियों की उपेक्षा के शिकार हैं? 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए शृंखलाबद्ध विस्फोटों, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए, पर जांच और कार्रवाई धीमी क्यों है? 3 मई 2008 को जयपुर में विस्फोट, 1 जनवरी, 25 मार्च व 6 अप्रैल 2009 को गुवाहाटी में हुए विस्फोट, 29 अक्तूबर 2005 को दिल्ली के बाजारों में हुए शृंखलाबद्ध विस्फोट क्यों अनसुलझे पड़े हुए हैं? इस दुष्प्रचार व घटनाओं के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेशराव उपाख्य भैयाजी जोशी ने एक वक्तव्य जारी किया और कहा कि इन घटनाओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़कर भ्रम फैलाने का प्रयास भी समाचार पत्रों के माध्यम से किया जा रहा है, जिसकी संघ घोर निंदा करता है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि गैर कानूनी एवं हिंसात्मक गतिविधियों में न संघ का समर्थन रहता है, न ही संरक्षण। इस वास्तविकता से आंखें मूंदकर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए संघ व अन्य हिन्दू संगठनों के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया, जबकि संप्रग सरकार के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री एम.के. नारायणन ने स्वयं माना था कि भारत में पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के 800 ठिकाने हैं और कुछ दिन पूर्व रक्षा मंत्री श्री ए.के. एंटनी ने पाकिस्तान में 32 आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के चलने की बात कही थी। संघ एक राष्ट्रभक्त संगठन संघ तो हिन्दू समाज के संगठन, चरित्र निर्माण, धर्म-संस्कृति के उन्नयन, राष्ट्रोत्थान, सेवा साधना व सामाजिक समरसता के पावन उद्देश्य को लेकर अपने स्थापनाकाल 1925 से ही अहर्निश मातृभूमि की सेवा में रत है। उसके राष्ट्रभाव से अनुप्राणित लक्षावधि कार्यकर्ता करोड़ों हिन्दुओं के अंतःकरण में भारत भक्ति का गान अनुगुंजित करने को प्रयत्नशील हैं। वनवासी क्षेत्रों से लेकर गांव-नगर-कस्बों की वंचित बस्तियों में डेढ़ लाख से ज्यादा सेवाकार्य उसके सहभाग से देश के कोने-कोने में चल रहे हैं। जब राहुल गांधी संघ और सिमी को एक ही पलड़े में तोलते हैं तो हंसी आती है कि राहुल गांधी को संघ तो छोड़िये, कांग्रेस और अपने पूर्वजों का भी इतिहास पता नहीं। जो सिमी भारत में ‘गजनी की वापसी’ के सपने देखता है, उसे संघ के समकक्ष रखना राहुल गांधी का देश की परिस्थितियों के प्रति अज्ञान ही दर्शाता है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने जो देशभक्तिपूर्ण भूमिका निभाई, उससे प्रेरित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने संघ के पूर्ण गणवेष धारी स्वयंसेवकों को 26 जनवरी 1963 को राजपथ की परेड में शामिल होने का आग्रह किया। इसी तरह 1965 में श्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संभालना आदि ऐसे अनेक घटनाक्रम संघ की राष्ट्रभक्ति व समाजसेवा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। दुर्भाग्य से वोट-राजनीति के चलते सच्चाई को नकार कर संघ के बारे में ‘मुस्लिम विरोधी’ व ‘साम्प्रदायिक’ जैसा दुष्प्रचार लगातार किया जाता रहा और संघ विरोध मुस्लिमपरस्त वोट-राजनीति का एक प्रमुख हथियार बन गया। लेकिन संघ अपने राष्ट्रभाव व सेवाव्रत के बूते इन सारे विरोधों के बीच और अधिक प्रखरता के साथ खड़ा हुआ। संघ ने भारत की हिन्दू चेतना को निरंतर ऊर्जावान किया है। मुस्लिम या अन्य किसी मत-पंथ के विरुद्ध नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत हिन्दू मन गढ़कर भारत के सर्वतोमुखी विकास और उसे एक स्वाभिमान सम्पन्न सशक्त राष्ट्र के रूप में विश्व में प्रतिष्ठित करने के लिए। ‘हिन्दू आतंकवाद’ जैसे छद्म शब्द गढ़कर संघ को उनसे जोड़ना ओछी चुनावी राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। ‘हिन्दू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम देना राजनीतिक चालबाजी के सिवाय और कुछ नहीं है। इसे देश का जनमानस समझता है। उसे इस झूठ और भ्रम के जाल में नहीं फंसाया जा सकता। संघ के प्रति हिन्दू समाज के विश्वास व सहकार से यह स्पष्ट है कि ऐसे षड्यंत्रों से रा.स्व.संघ का मार्ग अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। संघ मा भारती की सेवा में अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित व दृढ़ संकल्पित रहते हुए समाज के सहयोग से निरंतर आगे बढ़ता रहेगा और राष्ट्र मंदिर के भव्य निर्माण में अपनी सशक्त भूमिका का निर्वहन करता रहेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रचार विभाग, केशव कुंज, झंडेवाला, नई दिल्ली - 110055 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सम्पर्क अभियान-2011 | |
Tuesday, February 1, 2011
The politics of misinformation on terrorism
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