Tuesday, February 1, 2011

Jammu-Kashmir: Surrender to separatists?

Ayodhya: Time to fulfill the promise?

The RSS campaign of house to house contact.



surrender in Kashmir
Kashmir: Is the Government going to surrender to a handful of separatist elements from Valley under pressure of external powers?
Ayodhya:In the light of Judgment of Special Bench of Allahabad High Court on Ayodhya issue, should the Government now act to fulfill the wishes of Hindus to see a Grand Temple at the birth place of Bhagwan Sri Ram?
Is the Government trying to divert the attention of the people from these and other burning issues before the nation by selective leakage to media on some terrorism cases?
These are the questions the Swayamsevaks shall raise in a nationwide house to house contact campaign. In the quick links section of this site, the viewers will be able to see the content of the literature to be distributed in this campaign.
RSS plans campaign on paramount national issues
The Rashtriya Swayamsevak Sangh has started a nationwide campaign from this month to enlighten the masses on efforts being made to malign Hindus in the country by linking them to terrorist activities.
Manmohanji Vaidya
The Akhil Bharatiya Prachar Pramukh Shri. Manmohan Vaidya, told that three issues would be taken up during the two-month campaign. “The Ramjanmabhoomi and Kashmir issues will also be highlighted during the campaign,” he said.
“The RSS will prepare literature on these three issues and its members will undertake a door-to-door campaign, distributing the literature and educating people on these issues,” he said, adding that meetings will also be organized.
Reiterating that the RSS is not involved in any terror-related activities, Vaidya said there are certain forces in the country that are defaming Hindus by linking them to terrorism. “The RSS does not believe in violence and its aim is to work for the society and the nation,” he said.
Asked to comment on the charge sheet filed by the Central Bureau of Investigation (CBI) against the RSS leader, Indresh Kumar, in connection with the Ajmer blast, Vaidya said Kumar did not run away from the investigations.
“If there is involvement of anyone, it must be probed into and proved. After the charge sheet was filed, all kinds of statements began coming in from different quarters. Whenever the government is in trouble, the RSS has been targeted and defamed,” he said.
On the Ramjanmabhoomi issue, the senior RSS leader said that during the campaign, the thrust would be to highlight its history, the past agitation on the issue and the verdict of the court.
police beatenstones
“We will also highlight the problems in Kashmir to drive home the point that it is an integral part of India. The recent turmoil and the problems faced by our security forces too will be highlighted,” he added

The politics of misinformation on terrorism



flag
हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार की राजनीति
संत, मंदिर और संघ इस राष्ट्र की सुरक्षा की गारंटीहैं। केन्द्र सरकार हिन्दू समाज के हर मानबिंदु को खत्म करना चाहती है। वह झूठे आरोप लगाकर, संघ, संत और श्रद्धा के प्रतीक मंदिरों को बदनाम कर रही है। हिन्दू समाज इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। हिन्दू समाज, भगवा रंग और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आतंकके विरुद्धार्थी शब्द हैं। हिन्दुत्व के मूल में श्रेष्ठ जीवनमूल्य हैं, ये बदल नहीं सकते। उसी हिन्दुत्व का प्रतीक भगवा रंग है जो अपने राष्ट्र ध्वज का सिरमौर है। हिन्दुत्व हम सबकी पहचान है, जो सभी पंथों, उपासना पद्धतियों-संप्रदायों को केवल सहन ही नहीं करता, बल्कि स्वीकार भी करता है और उनकी सुरक्षा का अभिवचन देता है। इसी विचारधारा के आधार पर संपूर्ण समाज को संगठित करने वाले संघ के साथ आतंकवाद शब्द को छल-कपट से चिपकाने की चेष्टा चल रही है।
अपने देश में हुए कुछ बम विस्फोटों में कुछ व्यक्ति पकड़े गये, जो हिन्दू हैं। कहा जा रहा है कि वे सभी संघ के हैं। यह असत्य है। पकड़े गये अधिकतर लोग उग्र प्रकृति के हिन्दू तो हो सकते हैं, परंतु वे संघ से दूर गये लोग हैं। लेकिन इसको आधार बनाकर पहले बात चलायी गयी हिन्दू आतंकवादकी और जब ध्यान में आया कि जनमत इसका विरोध करेगा तो शब्द बदल दिया, कहा-भगवा आतंकवाद। यह सिद्ध करने का प्रयास हो रहा है कि ये लोग भी आतंकवादीहैं। यह एक सोचे-समझे राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है। जिन पर ये आरोप लगाए जा रहे हैं उनका चरित्र तो समाज के सामने खुला है, ये सेवा करने वाले, मनुष्य को सद्गुणों की शिक्षा देने वाले लोग हैं।
2003 के पश्चात् सबसे पहला हाथ कांची के जगद्गुरु शंकराचार्य पर डाला गया।
laxmananand
उसके बाद ओड़ीशा में स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या की गयी। स्वामी जी वहां के वनवासियों के बीच रहकर शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि सुधार, ग्राम विकास का काम करते थे। वह 80 साल की वृद्धावस्था में भी युवकोचित उत्साह से काम करते थे। वनवासी बंधुओं को स्वावलम्बन और स्वाभिमान की शिक्षा देते थे। उनसे किन्हें खतरा था, उनकी हत्या के पीछे कौन षड्यंत्रकारी थे, यह सबके सामने स्पष्ट है। पूर्व में आठ बार उनकी हत्या का प्रयास किया गया था, अंततः 9 वीं बार किया गया प्रयास सफल हो गया। ऐसा प्रयास होने वाला है, यह सूचना वहां की सरकार के पास थी, फिर भी उनकी सुरक्षा वापस ले ली गयी। उनकी हत्या के बाद दोषी अभी तक गिरफ्तार नहीं किए जा सके हैं। ये कौन लोग हैं, वहां का समाज जानता है। स्वामी लक्ष्मणानंद के सेवा कार्यों के कारण वहां हिन्दुओं का मतांतरण रुक गया था।
 
 
जिहादी आतंकवाद को समझें
वस्तुतः वास्तविकता को समझने के लिए भारत में जिहादी आतंकवाद के स्वरूप को समझना जरूरी है। attack on parliamentदेश में गत दो दशक से शुरू हुए जिहादी आतंकवाद के दौर में हजारों निर्दोष नागरिकों व सेना और सुरक्षा बलों के जवानों-अधिकारियों की नृशंस हत्या की गयी। राष्ट्र की संप्रभुता व आंतरिक सुरक्षा को छिन्न-विछिन्न कर देने जैसे दुष्ट प्रयास हुए। इनकी अनदेखी कर केन्द्र की संप्रग सरकार व कथित सेकुलर दलों के कुछ लोग वोट की राजनीति और सत्ता स्वार्थों के लिए हिन्दू-आतंकवाद का भूत खड़ा कर रहे हैं इस तरह हिन्दुत्व विरोधी दुष्प्रचार करते हुए ये लोग हिन्दू चेतना के प्रतीक देशभक्त हिन्दू संगठनों व साधु-संतों को बदनाम करने में लगे हैं और भ्रम उत्पन्न करके सत्ता की राजनीति के लिए राष्ट्रविरोधी व अलगाववादी ताकतों की अनदेखी की जा रही है।
भारत की संसद पर जिहादी हमले (13 दिसंबर, 2001) को अब नौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। पाकिस्तान पोषित सशस्त्रजिहादी आतंकवादी सारे सुरक्षा प्रबंधों को धता बताकर हमारी संसद में घुस गए और संसद परिसर रक्तरंजित हो गया।
train terror
इसके बाद तो इन आतंकवादियों ने हमारे बड़े नगरों को चुन-चुनकर निशाना बनाया। हमारे प्रमुख धार्मिक स्थलों, दिल्ली के चहल-पहल भरे बाजारों, मुम्बई लोकल ट्रेनों में शृंखलाबद्ध विस्फोटों से होते हुए
taj
यह आग 26/11 के वीभत्स और पूरे देश को चैंकाने वाले मुम्बई कांड तक पहुंच गई, लेकिन हमारी सरकार नहीं चेती।
यूपीए सरकार इस जिहादी आतंकवाद से कड़ाई से निपटने की न तो राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखा सकी और न इसके लिए जरूरी सख्त कदम उठा सकी। ऐसी स्थिति में नागरिकों में असुरक्षा की भावना घर कर जाए तो इसका तात्पर्य है कि देश की सरकार उन्हें सुरक्षा देने में पूरी तरह विफल है। यह अत्यंत दुर्भाग्यजनक है कि मुस्लिम तुष्टीकरण व वोट की राजनीति ने जिहादी आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न की। सरकार पिछले अनेक वर्षों में इससे निपटने की रणनीति, तैयारियों व योजनाओं का ढोंग करती रही, उसने जिहादी आतंकवाद से निपटने में कोई सख्ती नहीं दिखाई।
इसी मुस्लिमपरस्त मानसिकता का परिणाम है कि संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल को चार साल पूर्व सर्वोच्च न्यायालय से फांसी की सजा मिलने के बावजूद उसे फांसी के फंदे से लगातार बचाया जा रहा है।
कथित सेकुलर नेता दिल्ली के बाटला हाउस मुठभेड़ कांड में मारे गए जिहादी आतंकवादी मुस्लिम युवकों की हिमायत करते हुए न केवल उस मुठभेड़ पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि आतंकवादियों से लड़ते हुए बलिदान हुए पुलिस अधिकारी मोहन चन्द्र शर्मा के बलिदान को भी लांछित करते हैं और मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों के गांव (जिला आजमगढ़, उ.प्र.) जाकर उनके परिजनों को सांत्वना देते हुए न्याय दिलाने की बात करते हैं। आतंकवादियों के घरों में जाकर सांत्वना देने के लिए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के साथ-साथ कथित मानवाधिकारवादी तीस्ता सीतलवाड़ व जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी सहित अनेक सेकुलरों की दौड़ उस ओर शुरू हो गई है।
यह एक महत्वपूर्ण बात है कि लगभग सभी आतंकवादी घटनाओं के बाद उनको अंजाम देने का दावा करने वाले इस्लामी संगठन लश्कर-ए-तैयबा, हिज़्ब-उल-मुजाहिद्दीन, जमात-उद-दावा, इंडियन मुजाहिदीन, जैश-ए-मुहम्मद, अल कायदा सामने आते हैं। हाल ही में 7 दिसंबर को वाराणसी के गंगा घाट पर हुए आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी भी इंडियन मुजाहिदीन ने अपने सिर ली। ये आतंकवादी संगठन खुलेआम इस बात की अनेक बार अपने संदेशों व धमकियों में घोषणा कर चुके हैं कि दारुल हरब (मुस्लिम अल्पसंख्या वाली भारत की धरती) को दारुल इस्लाम (पूर्णतः इस्लामी विश्वास वाली धरती) में बदलने के लिए ये जिहाद है।
आतंकवाद सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, यह तो, भारत की पहचान को ही समाप्त कर देने का षड्यंत्र है। पाकिस्तान के तानाशाह जनरल ज़िया-उल-हक ने तो इस्लामिक युद्ध (जिहाद) पर एक पूरी पुस्तक लिखवाई जो पाकिस्तान के जवानों के लिए पढ़ना अनिवार्य थी। इस जुनूनी मानसिकता को समझने के बजाय कथित सेकुलर दल वोट और सत्ता की राजनीति के लिए उसे पोषित कर रहे हैं।
वोट-राजनीति का खेल
जनता का ध्यान भटकाने के उद्देश्य से इन तत्वों ने राजनीतिक षड्यंत्र रचकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू संगठनों व साधु-संन्यासियों के सिर आतंकवाद का ठीकरा फोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया। हिन्दू आतंकवादभगवा आतंकवादजैसे शब्द गढ़कर यूपीए सरकार ने जिहादी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को ही दूसरी दिशा में मोड़ दिया।
दरअसल राजनीतिक स्वार्थ के कारण हिन्दू आतंकवादके नाम पर दो निशाने साधने का शड्यंत्र किया गया- एक तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने का और दूसरा मुस्लिम मतदाता को भ्रमित करने का। वास्तव में यह हिन्दुत्व के विरुद्ध राजनीतिक दुष्प्रचार है, इसलिए सम्पूर्ण हिन्दू समाज को इसका प्रतिकार करने के लिए आगे आना चाहिए।
स्व. हेमंत करकरे के बारे में कांग्रेस के महासचिव श्री दिग्विजय सिंह का वक्तव्य झूठा, अनावश्यक व उद्वेगजनक है। ऐसे निराधार वक्तव्यों से आतंकवाद के साथ चल रही हमारी लड़ाई कमजोर होती है। अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए राजकीय नेता कितना नीचे गिर सकते हैं, यह इसका उदाहरण है।
इसी प्रकार कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी का विकीलीक्स द्वारा बाहर आया कथन कि लश्कर-ए-तैयबा की तुलना में भारत के लिए हिन्दू कट्टरवाद ज्यादा खतरनाक है, उनकी अपरिपक्वता तथा परिस्थिति का गलत आकलन ही दर्शाता है। जबकि सारी दुनिया जिहादी आतंकवाद से ग्रस्त एवं त्रस्त है, जिससे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहकार की बातें चल रही हैं, पाकिस्तान समर्थित एवं पोषित जिस आतंकवाद की त्रासदी को भारत गत 2 दशकों से लगातार झेल रहा है वह कौनसा आतंकवाद है? ऐसी स्थिति में श्री राहुल गांधी का यह बयान आतंकवाद के विरुद्ध हमारी लड़ाई की गंभीरता को ही कम करता है।
एक प्रश्न यह भी उठता है कि इन कुछ घटनाओं में जांच एजेंसियों व एटीएस ने जांच में जितनी तेजी व तत्परता दिखाई, अन्य दर्जनों मामले क्यों सरकार व जांच एजेंसियों की उपेक्षा के शिकार हैं? 11 जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में हुए शृंखलाबद्ध विस्फोटों, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए, पर जांच और कार्रवाई धीमी क्यों है? 3 मई 2008 को जयपुर में विस्फोट, 1 जनवरी, 25 मार्च व 6 अप्रैल 2009 को गुवाहाटी में हुए विस्फोट, 29 अक्तूबर 2005 को दिल्ली के बाजारों में हुए शृंखलाबद्ध विस्फोट क्यों अनसुलझे पड़े हुए हैं?
इस दुष्प्रचार व घटनाओं के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेशराव उपाख्य भैयाजी जोशी ने एक वक्तव्य जारी किया और कहा कि इन घटनाओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़कर भ्रम फैलाने का प्रयास भी समाचार पत्रों के माध्यम से किया जा रहा है, जिसकी संघ घोर निंदा करता है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि गैर कानूनी एवं हिंसात्मक गतिविधियों में न संघ का समर्थन रहता है, न ही संरक्षण।
इस वास्तविकता से आंखें मूंदकर अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए संघ व अन्य हिन्दू संगठनों के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया, जबकि संप्रग सरकार के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री एम.के. नारायणन ने स्वयं माना था कि भारत में पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों के 800 ठिकाने हैं और कुछ दिन पूर्व रक्षा मंत्री श्री ए.के. एंटनी ने पाकिस्तान में 32 आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के चलने की बात कही थी।
संघ एक राष्ट्रभक्त संगठन
educationaffectionhealth
संघ तो हिन्दू समाज के संगठन, चरित्र निर्माण, धर्म-संस्कृति के उन्नयन, राष्ट्रोत्थान, सेवा साधना व सामाजिक समरसता के पावन उद्देश्य को लेकर अपने स्थापनाकाल 1925 से ही अहर्निश मातृभूमि की सेवा में रत है। उसके राष्ट्रभाव से अनुप्राणित लक्षावधि कार्यकर्ता करोड़ों हिन्दुओं के अंतःकरण में भारत भक्ति का गान अनुगुंजित करने को प्रयत्नशील हैं। वनवासी क्षेत्रों से लेकर गांव-नगर-कस्बों की वंचित बस्तियों में डेढ़ लाख से ज्यादा सेवाकार्य उसके सहभाग से देश के कोने-कोने में चल रहे हैं।
जब राहुल गांधी संघ और सिमी को एक ही पलड़े में तोलते हैं तो हंसी आती है कि राहुल गांधी को संघ तो छोड़िये, कांग्रेस और अपने पूर्वजों का भी इतिहास पता नहीं। जो सिमी भारत में गजनी की वापसीके सपने देखता है, उसे संघ के समकक्ष रखना राहुल गांधी का देश की परिस्थितियों के प्रति अज्ञान ही दर्शाता है।
1962 के भारत-चीन युद्ध के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने जो देशभक्तिपूर्ण भूमिका निभाई, उससे प्रेरित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने संघ के पूर्ण गणवेष धारी स्वयंसेवकों को 26 जनवरी 1963 को राजपथ की परेड में शामिल होने का आग्रह किया। इसी तरह 1965 में श्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संभालना आदि ऐसे अनेक घटनाक्रम संघ की राष्ट्रभक्ति व समाजसेवा के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
दुर्भाग्य से वोट-राजनीति के चलते सच्चाई को नकार कर संघ के बारे में मुस्लिम विरोधीसाम्प्रदायिकजैसा दुष्प्रचार लगातार किया जाता रहा और संघ विरोध मुस्लिमपरस्त वोट-राजनीति का एक प्रमुख हथियार बन गया। लेकिन संघ अपने राष्ट्रभाव व सेवाव्रत के बूते इन सारे विरोधों के बीच और अधिक प्रखरता के साथ खड़ा हुआ। संघ ने भारत की हिन्दू चेतना को निरंतर ऊर्जावान किया है। मुस्लिम या अन्य किसी मत-पंथ के विरुद्ध नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत हिन्दू मन गढ़कर भारत के सर्वतोमुखी विकास और उसे एक स्वाभिमान सम्पन्न सशक्त राष्ट्र के रूप में विश्व में प्रतिष्ठित करने के लिए।
हिन्दू आतंकवादजैसे छद्म शब्द गढ़कर संघ को उनसे जोड़ना ओछी चुनावी राजनीति के अलावा और कुछ नहीं है। हिन्दू आतंकवादया भगवा आतंकवादका नाम देना राजनीतिक चालबाजी के सिवाय और कुछ नहीं है। इसे देश का जनमानस समझता है। उसे इस झूठ और भ्रम के जाल में नहीं फंसाया जा सकता। संघ के प्रति हिन्दू समाज के विश्वास व सहकार से यह स्पष्ट है कि ऐसे षड्यंत्रों से रा.स्व.संघ का मार्ग अवरुद्ध नहीं किया जा सकता। संघ मा भारती की सेवा में अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित व दृढ़ संकल्पित रहते हुए समाज के सहयोग से निरंतर आगे बढ़ता रहेगा और राष्ट्र मंदिर के भव्य निर्माण में अपनी सशक्त भूमिका का निर्वहन करता रहेगा।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रचार विभाग,
केशव कुंज, झंडेवाला, नई दिल्ली - 110055
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सम्पर्क अभियान-2011

Ayodhya: the task that still awaits us

Shri Ram
श्री रामजन्मभूमि अभियान
मंदिर निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ओर
1. भारत की आत्मा श्रीराम - भारत एक धर्मप्राण देश है। समय-समय पर अनेक अवतारों ने यहां आकर इस देश और इसके निवासियों को ही नहीं, तो स्वयं को भी धन्य किया है। ऐसे ही एक महामानव थे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम। महर्षि वाल्मीकि ने सर्वप्रथम श्रीरामकथा का उपहार हमें दिया। इसके बाद दुनिया की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में श्रीराम की महिमा लिखी गयी है। हजारों वर्षों से करोड़ों-करोड़ मनुष्य श्रद्धा और आस्था के साथ श्रीराम की कथा सुनते और उनकी पूजा करते आ रहे हैं।
constitution image
भारतीय संविधान के तीसरे अध्याय में, जहां मौलिक अधिकारों का उल्लेख है, सबसे ऊपर श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण के चित्र बने हैं। इन सबसे स्पष्ट है कि श्रीराम भारत की आत्मा हैं।
2. अयोध्या प्रकरण पर न्यायालय का निर्णय - यों तो अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए हिन्दुओं द्वारा तब से संघर्ष जारी है, जब १५२८ ई. में उसे तोड़ा गया था; पर स्वराज्य प्राप्ति के बाद यह विवाद न्यायालय में चला गया। गत 3० सितम्बर, २०१० को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने संविधान में मान्य हिन्दू कानून तथा पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर बहुत महत्व का निर्णय दिया है। इसमें सुन्नी बोर्ड के दावे को पूरी तरह निरस्त कर तीनों न्यायाधीशों ने एकमत से माना है कि -
यह स्थान ही श्रीराम जन्मभूमि है।
१५२८ में बाबरी ढांचे से पूर्व वहां एक गैरइस्लामिक (हिन्दू) मंदिर था।
एक न्यायाधीश ने तीनों गुम्बद (लगभग १५०० वर्ग गज) वाला पूरा स्थान हिन्दुओं को, जबकि शेष दो ने १/३ भाग मुसलमानों को भी देने को कहा है। यह विभाजन अव्यावहारिक, अनुचित और असंभव है। अतः पूरा स्थान हिन्दुओं को मिलना चाहिए। अयोध्या में कई मस्जिदें हैं; पर श्रीराम जन्मभूमि केवल यही है। पूरा स्थान मिलने से ही जन-जन की आकांक्षा और प्रभु श्रीराम की प्रतिष्ठा के अनुरूप भव्य मंदिर बन सकेगा।
3. इतिहास में अयोध्या - त्रेतायुग में श्रीराम का जन्म परम पावन सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या में हुआ। अयोध्या को लाखों साल से मोक्ष प्रदान करने वाली नगरी माना जाता है। यह आदिकाल से करोड़ों भारतवासियों की मान्यता है।
अयोध्या मथुरा माया, काशी कांचि अवन्तिका
पुरी द्वारावती चैव, सप्तैता मोक्षदायिकाः।।
अयोध्या सदा से भारत के सभी मत-पंथों के लिए पूज्य रही है। यहां जैन मत के पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ। भगवान बुद्ध ने यहां तपस्या की। गुरु नानक, गुरु तेगबहादुर एवं गुरु गोविंद सिंह जी भी यहां पधारे। दुनिया भर के इतिहासकारों और विदेशी यात्रियों की पुस्तकों के हजारों पृष्ठ अयोध्या की महिमा से भरे हैं। विश्व में प्रकाशित सभी प्रमुख मानचित्र पुस्तकों (एटलस) में अयोध्या को प्रमुखता से दर्शाया गया है।
4. मंदिर पर आक्रमण ७१२ ई. से मुस्लिम सेनाओं के आक्रमण शान्त और सम्पन्न भारत पर होने लगे। १५२६ ई. में बाबर भारत और १५२८ ई. में अयोध्या आया। उसके आदेश पर उसके सेनापति मीरबाकी ने श्रीराम मंदिर पर आक्रमण किया। १५ दिन के घमासान युद्ध में मीरबाकी ने तोप के गोलों से मंदिर गिरा दिया। इस युद्ध में १.७४ लाख हिन्दू वीर बलिदान हुए। फिर उसने दरवेश मूसा आशिकान के निर्देश पर उसी मलबे से एक मस्जिद जैसा ढांचा बनवा दिया। चूंकि यह काम हड़बड़ी और हिन्दुओं के लगातार आक्रमणों के बीच हो रहा था, इसलिए उसमें मस्जिद की अनिवार्य आवश्यकता मीनार तथा नमाज से पूर्व हाथ-पांव धोने (वजू) के लिए जल का स्थान नहीं बन सका।
5. मंदिर-प्राप्ति के प्रयत्न - इस घटना के बाद मंदिर की प्राप्ति हेतु संघर्ष का क्रम चल पड़ा। १५२८ से १९४९ ई. तक हुए ७६ संघर्षों का विवरण इतिहास में मिलता है। राजा से लेकर साधु-संन्यासी और सामान्य जनता ने इन युद्धों में भाग लिया। पुरुष ही नहीं, स्त्रियों ने भी प्राणाहुति दी। इस बीच कुछ मध्यस्थों के प्रयास से वहां बने राम चबूतरेपर हिन्दू पूजा करने लगे। लोग ढांचे वाले उस परिसर की परिक्रमा भी करते थे। अंग्रेजी शासन में अंतिम बड़ा संघर्ष १९३४ में बैरागियों द्वारा किया गया। उसके बाद वहां फिर कभी नमाज नहीं पढ़ी गयी।
6. समाधान का असफल प्रयास १८५७ के स्वाधीनता संग्राम के समय सरदार अमीर अली के नेतृत्व में स्थानीय मुसलमान यह स्थान छोड़ने को तैयार हो गये थे। इस वार्ता में हिन्दुओं के प्रतिनिधि बाबा राघवदास थे; पर अंग्रेजों ने हिन्दुओं और मुसलमानों को लड़ाये रखने के लिए दोनों को फांसी दे दी। इससे मामला फिर लटक गया।
7. श्रीरामलला का पूजन पुनः प्रारंभ - इस मामले में एक निर्णायक मोड़ तब आया, जब भक्तों ने २३ दिसम्बर, १९४९ को ढांचे में श्रीरामलला की मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना प्रारम्भ कर दी। प्रधानमंत्री नेहरू जी ने मूर्ति को हटवाना चाहा; पर प्रबल जनभावना को देख मुख्यमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत यह साहस नहीं कर सके। जिलाधिकारी श्री नायर ने वहां ताला डलवा कर शासन की ओर से पुजारी नियुक्त कर पूजा एवं भोग की व्यवस्था कर दी।
8. न्यायालय में वाद - जनवरी, १९५० में दो श्रद्धालुओं के आग्रह पर न्यायालय ने श्रीरामलला के नित्य दर्शन, पूजन एवं सुरक्षा की व्यवस्था की। १९५९ में निर्मोही अखाड़े ने तथा १९६१ में केन्द्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने स्वामित्व हेतु वाद दायर किये। न्यायालय में सुनवाई के बीच वहां पूजा, अर्चना और भक्तों का आगमन जारी रहा।
9. आंदोलन के पथ पर हिन्दू १९८३ में मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में हुए हिन्दू सम्मेलन में दो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं, पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री गुलजारीलाल नन्दा तथा उ.प्र. शासन के पूर्व मंत्री श्री दाऊदयाल खन्ना ने केन्द्र शासन से कहा कि वह संसद में कानून बनाकर श्रीराम जन्मभूमि, श्रीकृष्ण जन्मभूमि तथा काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दुओं को सौंप दे, जिससे देश में स्थायी सद्भाव स्थापित हो सके; पर शासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
यह देखकर हिन्दुओं को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समितिके बैनर पर आंदोलन का मार्ग अपनाना पड़ा। अक्तूबर, १९८४ में श्रीराम जानकी रथकी यात्रा द्वारा जन जागरण प्रारम्भ कर सबसे पहले रामलला को ताले से मुक्त करने की मांग की गयी। दबाव बढ़ते देख शासन ने १ फरवरी, १९८६ को ताला खोल दिया।

10. जन जागरण द्वारा मंदिर निर्माण की ओर - इसके बाद हिन्दुओं के सभी मत-पंथ के धर्मगुरुओं ने श्रीराम जन्मभूमि न्यासका गठन किया। जुलाई, १९८९ में इलाहबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री देवकीनंदन अग्रवाल ने न्यायालय से सम्पूर्ण परिसर को श्रीरामलला की सम्पत्ति घोषित करने को कहा। न्यायालय ने सब वाद लखनऊ की पूर्ण पीठ को सौंप दिये।
Ram Rath
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद की प्रमुख भूमिका के कारण यह अभियान जनांदोलन बन गया। सितम्बर, १९८९ में भारत के २.७५ लाख गांवों व नगरों के मंदिरों में श्रीराम शिलापूजन सम्पन्न हुआ। ६.२५ करोड़ लोगों ने इसमें भागीदारी की। विदेशस्थ हिन्दुओं ने भी शिलाएं भेजीं।
जनदबाव के चलते केन्द्र तथा राज्य शासन को झुकना पड़ा और ९ नवम्बर, १९८९ को प्रमुख संतों की उपस्थिति में शिलान्यास सम्पन्न हुआ। पहली ईंट बिहार से आये वंचित समाज के रामभक्त कामेश्वर चैपाल ने रखी। मंदिर आंदोलन समरसता की गंगोत्री बन गया।
Ashokji Singhal
11. १९९० में कारसेवा - जून, १९९० में हरिद्वार के हिन्दू सम्मेलन में पूज्य सन्तों व धर्माचार्यों ने मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा की घोषणा कर दी। ३० अक्तूबर को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की गर्वोक्ति के बाद भी कारसेवकों ने गुम्बदों पर भगवा फहरा दिया। बौखला कर उसने २ नवम्बर को गोली चलवा दी, जिसमें कई कारसेवक बलिदान हुए। इस नरसंहार से पूरा देश आक्रोशित हो उठा। मुलायम सिंह को हटना पड़ा। नये चुनाव में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने सत्ता संभाली। हिन्दू मंदिर निर्माण की ओर क्रमशः आगे बढ़ रहे थे।
12. भूमि का समतलीकरण - प्रदेश शासन ने तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए विवादित स्थल के पास २.७७ एकड़ भूमि अधिग्रहित कर ली। उसे समतल करते समय अनेक खंडित मूर्तियां तथा मंदिर के अवशेष निकले।
13. १९९२ में कारसेवा - अक्तूबर, १९९२ में दिल्ली में हुई धर्म संसदमें पूज्य धर्माचार्यों ने गीता जयन्ती (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी, छह दिसम्बर, १९९२) से फिर कारसेवा का निर्णय लिया। दीपावली पर अयोध्या से आई श्रीराम ज्योतिसे घर-घर दीप जलाये गये।
प्रदेश शासन के अधिग्रहण को मुसलमानों द्वारा न्यायालय में दी गयी चुनौती की याचिका पर नवम्बर १९९२ में सुनवाई पूरी हो गयी। दोनों हिन्दू न्यायमूर्तियों ने निर्णय लिख दिया; पर तीसरे श्री रजा ने इसके लिए १२ दिसम्बर, १९९२ की तिथि घोषित की। इससे अयोध्या आये दो लाख कारसेवकों के आक्रोश से वह जर्जर बाबरी ढांचा धराशायी हो गया।
shilalekh
इस प्रक्रिया में ११५४ ई. का वह शिलालेख भी मिला, जिस पर गहड़वाल राजाओं द्वारा मंदिर निर्माण की बात लिखी थी। कारसेवकों ने एक अस्थायी मंदिर निर्माण कर रामलला की पूजा प्रारम्भ कर दी।
14. केन्द्र शासन द्वारा हस्तक्षेप - अब केन्द्र सरकार की कुंभकर्णी निद्रा खुली। उसने ७जनवरी, १९९३ को विवादित क्षेत्र तथा उसके पास की ६७ एकड़ भूमि अधिग्रहीत कर ली। इसी समय महामहिम राष्ट्रपति डा. शंकरदयाल शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय से पूछा कि क्या १५२८ से पूर्व वहां कोई हिन्दू मंदिर या भवन था ? सर्वोच्च न्यायालय ने यह प्रश्न प्रयाग उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ को सौंप दिया।
इधर केन्द्र के अधिग्रहण को इस्माइल फारुखी ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस पर बहस में शासन ने लिखित शपथ पत्र में कहा कि अंतिम निर्णय के बाद उस स्थान पर यदि हिन्दू मंदिर या भवन सिद्ध होगा, तो वह उसे हिन्दुओं को लौटाने को प्रतिबद्ध है। ऐसा न होने पर मुसलमानों की इच्छा का सम्मान किया जाएगा।
15. राडार सर्वेक्षण एवं उत्खनन - न्यायालय ने कहा कि यदि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी है, तो उसके अवशेष धरती के नीचे अवश्य होंगे। उसके आदेश पर कनाडा के वैज्ञानिकों ने राडार सर्वेक्षण से भूमि के नीचे के चित्र लिये। प्राप्त चित्रों तथा इनकी पुष्टि के लिए हुए उत्खनन से वहां प्राचीन मंदिर था, यह सिद्ध हुआ। न्यायालय का ३० सितम्बर, २०१० का निर्णय इन प्रमाणों पर ही आधारित है।
16. वार्ताओं का क्रम - पूज्य सन्तों, विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यह इच्छा थी कि भारतीय मुसलमान स्वयं को बाबर जैसे विदेशी आक्रामकों से न जोड़ें और प्रेम से वह स्थान हिन्दुओं को दे दें। गांधी जी ने भी अपने समाचार पत्र नवजीवनमें २७.७.१९३७ को यही कहा था। सब समझदार मुसलमान भी इस पक्ष में थे; पर बात नहीं बनी। अतः प्रधानमंत्री राजीव गांधी और फिर चंद्रशेखर ने दोनों पक्षों को वार्ता के लिए बुलाया। वार्ता की असफलता से न्यायालय का मार्ग ही शेष बचा, जिसके निर्णय से सत्य की जीत हुई है।
Templecurrent Temple
17. चुनौती और संकल्प - आज भी प्रभु श्रीराम बांस और टाट के उस अस्थायी मंदिर में विराजित हैं। हर दिन हजारों भक्त उनके दर्शन करते हैं। हमारी मांग है कि सोमनाथ मंदिर की तरह ही संसद कानून बनाकर श्रीराम जन्मभूमि हिन्दुओं को सौंपे, जिससे वहां भव्य मंदिर बन सके।
18. मंदिर निर्माण से राष्ट्र निर्माण - श्रीराम केवल हिन्दुओं के ही नहीं, भारतीय मुसलमान और ईसाइयों के भी पूर्वज हैं। भारत माता सबकी माता है। सब एक संस्कृति के उपासक और एक ही समाज के अंग हैं। न्यायालय का निर्णय मुसलमानों को अपनी भूमिका पर पुनर्विचार का अवसर देता है। मंदिर निर्माण में सब मत, पंथ और मजहब वालों के सहयोग से स्थायी सद्भाव का निर्माण होगा और देश तेजी से प्रगति करेगा। इससे भारत में रामराज्य की कल्पना साकार होगी, जो आज भी विश्व में आदर्श माना जाता है। आइये, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए हम सब संकल्प लें। जय श्रीराम।

किसी के धार्मिक उपासना गृह पर बलात्कारपूर्वक अधिकार करना बड़ा जघन्य पाप है। मुगलकालीन समय में धार्मिक स्थलों पर कब्जा कर लिया गया था। जो हिन्दुओं के पवित्र आराधना गृह थे, उन्हें लूटपाट कर बहुतों को मस्जिद का रूप दे दिया गया। जहां पर ऐसे कांड हुए हैं, वे धार्मिक गुलामी के चिन्ह हैं।
दोनों समुदायों को चाहिए कि वे आपस में तय कर लें। मुसलमानों के वे पूजा स्थान जो हिन्दुओं के अधिकार में हैं, हिन्दू उन्हें लौटा दें। इसी तरह हिन्दुओं के जो धार्मिक स्थान मुसलमानों के कब्जे में हैं, उन्हें वे खुशी-खुशी हिन्दुओं को सौंप दें। इससे आपसी भेदभाव नष्ट होकर एकता की वृद्धि होगी, जो भारत जैसे धर्मप्रधान देश के लिए वरदान सिद्ध होगी।
(मो.क.गांधी, नवजीवन: २७.७.१९३७)

वार्ता के असफल होने पर शासन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार समाधान को लागू करेगा। यदि ढहाए गये ढांचे के स्थान पर उससे पूर्व किसी हिन्दू मंदिर या भवन की पुष्टि होती है, तो सरकार हिन्दू समाज की; और ऐसा न होने पर मुस्लिम समुदाय की इच्छानुसार कार्य करेगी।
(इस्माइल फारुखी बनाम भारत सरकार निर्णय)
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रचार विभाग,
केशव कुंज, झंडेवाला, नई दिल्ली - 110055
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सम्पर्क अभियान-2011
 

kashmir: the way to complete integration



map
पूर्ण विलय से पूर्ण एकात्मता की ओर
 
गौरवशाली अतीत पर प्रश्नचिन्ह?
महर्षि कश्यप द्वारा निर्मित भारत का नंदन वन (कश्मीर घाटी) आज पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की आग में सुलग रहा है। सारे संसार में भारतीय राष्ट्रवाद पर आधारित शैवमत, बौद्धमत, वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करने वाले जम्मू-कश्मीर की धरती से हजारों हिन्दू महापुरुषों की परंपरा और नाम मिटाए जा रहे हैं।
अरब हमलावरों का सफल प्रतिकार करने वाले सम्राट चन्द्रापीढ़, ईरान-तुर्किस्तान से लेकर मध्य एशिया तक भारत की सांस्कृतिक पताका फहराने वाले सम्राट ललितादित्य, महाराजा अवन्तिवर्मन्, काबुल तक शासन करने वाले राजा शंकर वर्मन् की दिग्विजयी विरासत कश्मीर घाटी के गौरवशाली हिन्दू इतिहास की साक्षी हैं।
इसी प्रकार मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के सुपुत्र कुश के वंशज बाहुलोचन/जम्बूलोचन, तथाकथित विश्वविजेता सिकंदर के अभियान को विफल करने वाले डोगरे वीर, महमूद गजनवी को दो बार पराजित करने वाले महाराजा संग्रामराज, बंदा वीर वैरागी, जोरावर सिंह और महाराणा गुलाब सिंह डुग्गर धरती (जम्मू) का स्वाभिमान हैं। लेह-लद्दाख के हजारों बौद्ध मठ भी भारत की राष्ट्रीय संस्कृति के प्रतीक हैं। जम्मू-कश्मीर के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थलों, विशाल आश्रमों और सांस्कृतिक केन्द्रों के खण्डहरों को देखकर समूचे जम्मू-कश्मीर के गौरवशाली कालखण्ड का परिचय मिलता है।
धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण
इतिहास साक्षी है कि पूरे भारत में विदेशी हमलावरों ने बलात् धर्मांतरण द्वारा हिन्दू पूर्वजों की संतानों को विधर्मी बनाकर भारत विरोधियों की एक लम्बी कतार खड़ी कर दी। इसी तरह का क्रूर इतिहास जम्मू-कश्मीर में भी दोहराया गया और यही वर्तमान अलगाववाद का आधार है। धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण का ये दर्दनाक दृश्य सन् 1320 से शुरु हुआ और कश्मीर घाटी का भारतीय स्वरूप बिगाड़ने वाला यह काला इतिहास सन् 1989 में हुए कश्मीरी हिन्दुओं के बलात् सामूहिक निष्कासन तक जारी रहा।
भारत का विभाजन और पाकिस्तान का आक्रमण
भारत का विभाजन होते ही जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने पाकिस्तान के साथ स्टैण्डस्टिल ऐग्रीमेंटकर लिया क्योंकि कश्मीर घाटी को जाने वाला एकमात्र मार्ग रावलपिंडी से ही था। इस समझौते को तोड़कर 22 अक्टूबर सन् 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए कश्मीर घाटी पर आक्रमण कर दिया। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरुजी गोलवलकर की पहल पर महाराजा हरिसिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को पूरे जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कर दिया। भारत की सेना कश्मीर घाटी में पहुंची।
भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना द्वारा विजित भारतीय इलाकों को मुक्त करवाने के लिए जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए तो प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा के साथ पाकिस्तानी आक्रमण का मुद्दा यूएनओ की सुरक्षा परिषद में भेज दिया। साथ ही जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह जैसा असंवैधानिक आश्वासन जोड़ दिया। जम्मू-कश्मीर का जो भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया आज उसी पाक अधिग्रहित कश्मीर में पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों की देखरेख में कश्मीरी युवकों को हिंसक जिहाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
पूर्ण और अंतिम विलय
26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय उसी वैधानिक विलय पत्र के आधार पर किया जिस पर भारत की शेष 568 रियासतों के राजाओं ने किया था।
भारत के गवर्नर जनरल ने 27 अक्टूबर 1947 को इस विलय को स्वीकृति दे दी। ये विलय सशर्त नहीं था। भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अनुसार इस विलय पर आपत्ति करने का अधिकार संबंधित राज्यों के निवासियों सहित किसी को भी नहीं था।
1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का निर्वाचन हुआ। इसी संविधान सभा ने 6 फरवरी 1954 को जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की पुष्टि कर दी। 1956 में इस संविधान सभा ने भारत के संविधान के अनुछेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर का अपना अलग संविधान बनाने की प्रक्रिया पूर्ण की। 26 जनवरी 1957 को यह संविधान जम्मू-कश्मीर की विधान सभा की स्वीकृति के बाद लागू हो गया। इसी संविधान की धारा 3 के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा।धारा 4 के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य में वह सारा क्षेत्र शामिल है जो 15 अगस्त 1947 तक राज्य के राजा के आधिपत्य में था। इसी संविधान की धारा 147 में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धारा 3 व धारा 4 को बदला नहीं जा सकता।
स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर की जनता, विधानसभा और सरकार ने यह कानूनी रूप से माना है कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
1975 में हुए इंदिरा-शेख समझौते में भी जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कहा गया है।
22 फरवरी 1994 को भारतीय संसद में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव के माध्यम से संकल्प दोहराया गया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
डा. मुखर्जी का अमर बलिदान
महाराजा हरिसिंह द्वारा जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय करने के पश्चात भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्नातक, मुस्लिम कांफ्रेंस के निर्माता और मुस्लिम बहुल कश्मीर में मजहबी जुनून फैलाकर हिन्दू राजा के विरुद्ध बगावत करने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम नेता और अपने खास दोस्त शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को सत्ता सौंपने के लिए महाराजा को मजबूर किया।
भारत के संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया गया।
शेख अब्दुल्ला द्वारा सत्ता पर बैठते ही जम्मू और लद्दाख के क्षेत्रों के साथ भेद-भाव का सिलसिला शुरू कर दिया गया।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को वजीर-ए-आजम और सदर-ए-रियासत कहा जाने लगा। भारतीयों के लिए जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने के लिए परमिट बनवाना जरूरी हो गया।
शेख के इन अत्याचारों के विरुद्ध जम्मू की राष्ट्रवादी शक्तियों ने पं. प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद नामक संगठन बनाकर एक प्रचंड सत्याग्रह शुरु किया। शेख अब्दुल्ला द्वारा किए गए अत्याचारों का सामना करते हुए दो दर्जन कार्यकर्ता शहीद हुए। हजारों को जेलों में बंद करके अमानवीय यातनाएं दी गई।
shyamaprasad
प्रजा परिषद का यह प्रचण्ड आंदोलन पूरे देश में चला। भारतीय जनसंघ के प्रधान डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इस परमिट व्यवस्था को तोड़कर सत्याग्रह किया। श्रीनगर के कारावास में रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई तब जाकर भारत के प्रधानमंत्री को सारी परिस्थिति समझ में आई। शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया, परमिट व्यवस्था समाप्त हुई।
अलगाववादी विशेष दर्जा
सारी परिस्थितियां समझ में आने के बाद भी भारत के प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को कायम रखा और अलग झण्डे, संविधान की स्वीकृति दे दी। परिणामस्वरूप:-
भारत की सरकार भारतीय संसद द्वारा पारित कोई भी कानून प्रदेश की विधान सभा की अनुमति के बिना जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं कर सकती।
जम्मू-कश्मीर का नागरिक भारत का भी नागरिक है जबकि शेष भारत का नागरिक (राष्ट्रपति सहित) जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं हो सकता। उसे वहां संपत्ति खरीदने और वोट देने जैसे अनेकों मौलिक अधिकार भी प्राप्त नहीं हैं।
जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल यहां का नागरिक न होने के कारण बाहर का व्यक्ति (विदेशी) कहलाता है। अलगाववादी राज्यपाल को भारत का एजेण्ट प्रचारित करते हैं।
भारतीय संसद में पारित पूजा स्थल विधेयक, सरकारी जन्म नियंत्रण कानून और मण्डल कमीशन रिपोर्ट इत्यादि समेत 100 से अधिक कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं किए जा सके।
जम्मू-कश्मीर के अलग संविधान ने कश्मीर के अधिकांश मुस्लिम युवकों को भारत के साथ जुड़ने नहीं दिया।
एक ओर भारत की सरकार अपने को संसार का सबसे बड़ा पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करती है और दूसरी ओर इसी राष्ट्र के एक अभिन्न प्रांत जम्मू-कश्मीर में एक समुदाय के बहुमत के आधार पर अलग संविधान को मान्यता दे रही है।
Kashmir Pandit house
कश्मीरी पंडितों के उजड़े हुए घर
समस्या की जड़ मजहबी कट्टरवाद
वास्तव में कश्मीर की समस्या का आधार राजनीतिक न होकर मजहबी कट्टरवाद और सीमापारीय आतंकवाद है। इसीलिए कट्टरपंथियों द्वारा आजादी मांगी जा रही है। यही वजह है कि पिछले 63 वर्षों में जम्मू-कश्मीर को दी गई अरबों रुपयों की आर्थिक सहायता के बावजूद वहां अलगाववाद बढ़ा है। नैशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, हुर्रियत कांफ्रेस, तहरीके हुर्रियत तथा अन्य आतंकवादी संगठन क्रमशः अटानिमी, सेल्फ रूल, ग्रेटर कश्मीर, पाकिस्तान में विलय और आजाद कश्मीर जैसी अराष्ट्रीय मांगें कर रहे हैं।
ये सभी संगठन जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र घोषित करने, भारतीय सेना की जम्मू-कश्मीर से वापसी, सुरक्षा बलों के विशेषाधिकारों की समाप्ति, मुजाहिद्दीनों (आतंकियों) की रिहाई, नियंत्रण रेखा को आम रास्ता बनाने, पाकिस्तान की मुद्रा को कश्मीर घाटी में जारी करने, पूरे जम्मू-कश्मीर पर भारत/पाकिस्तान का संयुक्त नियंत्रण कायम करने जैसे मुद्दे उठा रहे हैं।
मुख्यमंत्री का असंवैधानिक वक्तव्य
उमर अब्दुल्ला ने प्रदेश की विधानसभा में साफ कहा है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय अधूरा और सशर्त है। घाटी में व्याप्त वर्तमान परिस्थितियां केवल कानून व्यवस्था का ही संकट नहीं है। कश्मीर के लोगों की उम्मीदों को सिर्फ विकास, अच्छी सरकार और आर्थिक पैकेजों से ही पूरा नहीं किया जा सकता इसके लिए एक राजनीतिक हल जरूरी है।इसी प्रकार पी. चिदंबरम भी कहते हैं कि कश्मीरियों के जज्बात और उनसे किए गए वादों को पूरा करना होगा। गृहमंत्री महोदय ने भारतीय सेना को वापस बुलाने और सुरक्षाबलों के विशेषाधिकारों को समाप्त करने जैसे आश्वासन भी अलगाववादियों को दिए हैं। सेना के तीन डिवीजन हटा लिए गए हैं।
भेदभाव की पराकाष्ठा
जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता और भारतीय सेना की वापसी के लिए उतावले हो रहे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कश्मीर घाटी से निवार्सित किए गए चार लाख कश्मीरी हिन्दुओं की घर वापसी, विभाजन के समय पाकिस्तान और पीओके से आकर जम्मू में बसे लाखों हिन्दुओं की नागरिकता, भारत-पाकिस्तान युद्धों के समय सीमांत क्षेत्रों से हटाए गए लोगों के पुर्नवास, आतंकवाद से पीड़ित लोगों की दशा, जम्मू और लद्दाख संभागों के प्रति हो रहे पक्षपात इत्यादि समस्याओं की ओर ध्यान नहीं जा रहा उन्हें केवल कश्मीर घाटी की चिंता है।
विदेशी संस्कृति (कथित कश्मीरियत)
अलगाववादियों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में चलाया जा रहा वर्तमान जिहाद कश्मीरियतकी रक्षा के लिए है। यह कहते हुए अलगाववादी नेता 6 हजार वर्ष पुरानी संस्कृति को तिलांजलि देकर 6 सौ वर्ष पुरानी उस कश्मीरियत की दुहाई देते हैं जो कश्मीर की धरती पर विकसित नहीं हुई। यह तो कश्मीर पर आक्रमण करने वाले विदेशी हमलावरों की तहजीबहै जिसे जबरदस्ती कश्मीरियत बनाया जा रहा है। दुख की बात है कि इस विदेशी संस्कृति के पोषक आज कश्मीर के मालिक बने बैठे हैं और मौलिक संस्कृति के उत्तराधिकारी कश्मीरी हिन्दू विस्थापित होकर देश के कोने-कोने में भटक रहे हैं।
वर्तमान परिस्थिति
तीन बार किए गए युद्धों के बाद भी कश्मीर को हड़पने में विफल रहे पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में आपरेशन टोपाज़के अंतर्गत 80 के दशक में आतंक आधारित अघोषित युद्ध प्रारम्भ कर दिया। आतंकियों के निशाने पर भारतीय सेना, हिन्दू और राष्ट्रवादी मुसलमान थे। भारतीय सुरक्षाबलों के बलिदानों से आतंकवाद कुछ थमा तो है परन्तु पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर की सीमाओं में सशस्त्र घुसपैठ जारी है। कश्मीर घाटी में सक्रिय इन संगठनों के नेताओं के तार पाकिस्तान में बैठे आतंकी कमाण्डरों और आईएसआई के अधिकारियों के साथ जुड़े हुए हैं। वहां से इन्हें धन, हथियार और मार्गदर्शन मिल रहा है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज, संविधान और सुरक्षा बलों का सरेआम अपमान किया जा रहा है। कश्मीर बनेगा-पाकिस्तान’, ‘हम क्या चाहते-आजादी’, ‘कश्मीर में चलेगा-निजाम ए मुस्तफा’, ‘भारतीय सेना/कुत्तो वापस जाओऔर पाकिस्तान जिंदाबादइत्यादि नारों से अलगाववादी तत्व अपना एजेण्डा घोषित कर रहे हैं। 20 वर्ष पूर्व कश्मीर के मूल निवासी 4 लाख कश्मीरी पंडितों का जबरदस्ती पलायन करवाकर कश्मीर घाटी को लगभग हिन्दू विहीन करने के पश्चात अब वहां रह रहे 60 हजार से ज्यादा सिखों को इस्लाम कबूल करने अथवा कश्मीर से निकल जाने के जिहादी फरमान जारी किए जा रहे हैं। पाकिस्तान के इशारे पर अलगाववादी नेता आतंकी कमाण्डरों की योजनानुसार बच्चों और महिलाओं द्वारा भारतीय सैनिकों पर पत्थरबाजी करवा रहे हैं।
भ्रमित वार्ताकार
समस्या का समाधान खोजने के लिए भारत की सरकार द्वारा कश्मीर में भेजे गए प्रतिनिधि मण्डलों और वार्ताकारों में शामिल इन तथाकथित प्रगतिशील राजनेताओं/पत्रकारों और लेखकों ने जेलों में जाकर आतंकवादियों से और घरों में जाकर अलगाववादी नेताओं के साथ हमदर्दी जताते हुए उनसे ‘‘आजादी का रोडमैप’’ ही नहीं मांगा अपितु यह बयान भी दागे कि जम्मू-कश्मीर कभी भारत का अंग रहा ही नहीं। इन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने मुख्यमंत्री और हुर्रियत नेताओं द्वारा दिए गए असंवैधानिक बयानों पर स्वीकृति की मोहर लगा दी।
Police helpless
घुटने टेकती सरकार
जैसे-जैसे समय बीत रहा है कश्मीर घाटी में पांव पसार चुके पाकिस्तानी तत्वों की ताकत बढ़ रही है। तुष्टीकरण के नशे में केन्द्र की सरकार एक बार फिर घुटने टेकती नजर आ रही है। प्राप्त समाचारों के अनुसार अटानमी अर्थात 1953 से पहले वाली संवैधानिक व्यवस्था थोपने की तैयारी चल रही है। यह व्यवस्था भारत के संविधान, संसद और सर्वोच्च न्यायालय को ठुकरा कर आजादी का रास्ता प्रशस्त करेगी।
देशघातक गिरोह
उधर कश्मीर घाटी में सक्रिय अलगाववादी नेता सरकार और प्रशासन के आशीर्वाद से देश के विभिन्न शहरों में जाकर अपने अलगाववादी एजेण्डे का खुला प्रचार कर रहे हैं। राष्ट्रविरोधी माओवादी, नक्सलवादी, खालिस्तानी और कई वामपंथी नेता इनका साथ दे रहे हैं। ये लोग स्थान स्थान पर जाकर कश्मीर की आजादी जैसे विषयों पर विचार गोष्ठियां कर रहे हैं। इनका सार्वजनिक तौर पर पूर्ण बहिष्कार होना चाहिए।
वास्तविक समाधान
जम्मू-कश्मीर की भारत के अन्य प्रान्तों के साथ एकात्मता करने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन के साथ अनुच्छेद 370 को समाप्त करके प्रदेश के अलग झण्डे और अलग संविधान के अस्तित्व को समाप्त किया जाए।
hidden agenda
जम्मू-कश्मीर के प्रशासन में जमे बैठे पाकिस्तान समर्थकों, धार्मिक स्थलों में छिपे उपद्रवियों और जंगलों में स्थापित आतंकियों के गुप्त ठिकानों पर सेना की सहायता से सख्त कार्रवाई की जाए।
अलगाववादी संगठनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर इनके नेताओं पर देशद्रोह के मुकद्दमें चलाए जाएं।
कश्मीर घाटी में अपने घरों से जबरदस्ती और योजनाबद्ध तरीके से उजाड़े गए चार लाख से ज्यादा हिन्दुओं की सम्मानजनक एवं सुरक्षित घर वापसी को सुनिश्चित किया जाए। पाक-अधिकृत कश्मीर से आए हिन्दुओं को सभी मौलिक अधिकार दिए जाएं और जम्मू और लद्दाख के प्रति हो रहे भेद-भाव को समाप्त करने की संवैधानिक व्यवस्था की जाए।
सुरक्षाबलों के विशेषाधिकार वापस लेने जैसे कदम उठाकर उनके मनोबल को न तोड़ा जाए। सामान्य नागरिकों की सुरक्षा के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात सुरक्षाबलों को देशद्रोही आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने के सभी अधिकार सौंपे जाएं।
सन् 1994 में भारतीय संसद द्वारा लिए गए संकल्प संपूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंगको क्रियान्वित करने के लिए यथासंभव कार्रवाई की जाए।
समय की आवश्यकता-राष्ट्रीय सहमति
मुस्लिम कश्मीरी विद्वान यह अच्छी तरह से जानते हैं कि वे हिन्दू पूर्वजों की संतानें हैं और भारतीय संस्कृति का अभिन्न भाग कश्मीरियत हिन्दू और मुसलमानों की सांझी विरासत है।
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के कुल 22 जिलों में केवल कश्मीर घाटी (मात्र 14 प्रतिशत क्षेत्रफल) के 10 जिलों में से मात्र 5 जिलों (श्रीनगर, बारामूला, पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां) में ही अलगाववादियों का प्रभाव है शेष 17 जिलों में राष्ट्र भक्तों का प्रबल बहुमत है।
समय की आवश्यकता है कि अलगाववादियों पर सख्त कार्रवाई हो ताकि कश्मीर घाटी में सहमी हुई राष्ट्रवादी शक्तियों को बल मिले। यदि भारत की सरकार अब भी न चेती और देश की राष्ट्रवादी शक्तियों ने संगठित होकर अलगाववादी मनोवृत्ति और तुष्टिकरण की राजनीति का प्रतिकार न किया तो देश की अखण्डता पर मंडरा रहा यह संकट और भी गहरा जाएगा।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रचार विभाग,
केशव कुंज, झंडेवाला, नई दिल्ली - 110055
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सम्पर्क अभियान-2011